Friday, October 20, 2017

बेहतर क्या है : फिक्स डिपांजिट (एफ-डी) या म्यूचुअल फंड?

पिछले कई सालों में घटती ब्‍याज दरों के कारण आपके एफडी से होने वाली आय में
लगभग 40 प्रतिशत तक की कमी आ गई है। निवेशक आम तौर पर रिटर्न सम्‍बंधी हिसाब
किताब सही से नही रखते है  क्‍योंकि उनकों इसकी जानकारी ही नही है। उदाहरण के लिए
यदि एफडी की ब्‍याज की दर 8 प्रतिशत से 7.50 प्रतिशत हो जाती है तो यह 0.50 प्रतिशत
की कमी उनको कम लगती है जबकि इससे कमाई में आने वाली गिरावट कही ज्‍यादा होती है।
अगर हम पिछले उदाहरण को ही ले तो यह गिरावट 0.50 प्रतिशत नही बल्कि साधारणतया
6.25 प्रतिशत लगती है जबकि वास्‍तविकता यह है कि यह 6.42 प्रतिशत है क्‍योंकि ब्‍याज
त्रैमासिक गुणांक (Quarterly Compounding)मे मिलता है।
इस समस्‍या का आसान तरीका है कि हम अपने पैसे को एफ-डी से निकालकर एक कम रिक्‍स वाले 
म्‍यूचुअल फंड में डाले। एक औसत लिक्विड फंड (जिसमें न्‍यूनतम रिस्‍क और उतार चढाव होता है) 
ने एफ-डी के ब्‍याज से 0.25 से 0.50 प्रतिशत औसतन ज्‍यादा रिटर्न दिया है और साथ ही साथ एक
अन्‍य लाभ दिया है वो है टैक्‍स। तीन साल से कम के निवेश के लिए कर के नियम दोनों स्थितियों में 
एक जैसे ही है। अगर आप अपने फंड का सारा निवेश बेच दें तो उस पर कर की वही दर लागू होगी जो एफ-डी पर
लागू होती है। लेकिन आपका लक्ष्‍य केवल लाभ है तो फंड की इस निकासी पर दिया जाने वाला टैक्‍स बहुत कम होगा
क्‍योंकि ब्‍याज आय है जबकि फंड का रिटर्न को कैंपिटल गेन माना जाता है।

यदि निवेश एफ-डी में किया जाए तब एक साल का ब्‍याज पूरी ब्‍याज आपकी कर योग्‍य आय में 
जोडी दी जायेगी। यह राशि आपके टैक्‍स स्‍लैब को बढा सकती है या फिर अगर आप ऊचे टैक्‍स 
स्‍लैब में आते है तो इस राशि का टैक्‍स भी ज्‍यादा होगी। एफडी में रू १००००.०० से अधिक के
ब्‍याज पर आय श्रेणी के हिसाब से टैक्‍स लगता हैं।

यदि निवेश म्‍यूचुअल फंड में किया जाता है तो आपका रिटर्न को ही लाभ माना जायेगा और
उस पर टैक्‍स लगभग न्‍यूनतम होगा। डेट फंड में तीन साल बाद राशि निकालने पर लंबी अवधि
का पूंजीगत लाभ कर एलटीसीजी (LTCG ) इंडेक्‍शन के हिसाब से लगता है। इंडेक्‍शन के तहत लाभ
में महंगाई दर को घटाकर आकलन किया जाता है जिसकी वजह से कम टैक्‍स लगता है। जबकि
तीन साल से पहले निकालने पर १५ प्रतिशत के हिसाब से छोटी अवधि का पूंजीगत लाभ कर 
(STCG) चुकाना पडता है।


एफ-डी की पूरी ब्‍याज को हर साल अपको अपने करयोग्‍य आय में जोड़ा जाता है चाहे आप इसे 
प्राप्‍त करे या नही अन्‍य शब्‍दों में वार्षिक लायबिलिटी होती है जबकि फंड की रिटर्न को आय मे
तभी जोडा जाता है जब हम इसको प्राप्‍त करते हैं यानि कोई वार्षिक लायबिलिटी नहीं होती है 
इसलिए  पैसा तब कि जुडता रहता है जब तक फंड के निवश को बरकरार रक्‍खा जायें।