साल 2008 में राजन कुमार ने इक्विटी म्यूचुअल फंड में 20 लाख रुपए निवेश किए। जब बाजार लुढ़का, तो उनका हाथ भी जला। राजन आज भी इस बात पर हैरत जता रहे हैं कि वैल्यूएशन का बुलबुला बनने को लेकर इतनी बातचीत हो रही थी, लेकिन इसके बावजूद फंड मैनेजर ने रणनीति बदलकर सारी संपत्ति, नकदी में क्यों न बदल दी। फंड मैनेजर के पास अपने तर्क थे। उनका प्रदर्शन स्टॉक इंडेक्स से बेहतर था, जिसे वह बेंचमार्क के तौर पर इस्तेमाल कर रहा था।
अगर वह चाहता, तो भी सारा निवेश नकदी में नहीं बदला जा सकता था, क्योंकि आवंटन पर स्कीम केंद्रित पाबंदियां लगी हैं। लेकिन इन तर्कों से राजन को कोई राहत नहीं मिली, जो रिटर्न और पूंजी सुरक्षा चाहते थे। अब सवाल उठता है कि क्या कोई ऐसी निवेश रणनीति है, जो बाजार के हालात कैसे भी क्यों न हों, बढ़िया रिटर्न मुहैया कराए?
यह ख्वाब की तरह लगता है, लेकिन ब्रोकरेज फर्म ऐसी पोर्टफोलियो मैनेजमेंट स्कीम पेश करती हैं, जिनका उद्देश्य ठीक यही है। ये कस्टमाइज समाधान होते हैं, जिसमें फंड मैनेजर गिरावट की आशंका के हिसाब से नकदी में बने रहने का फैसला कर सकते हैं।
मनी मैनेजमेंट कारोबार में लगातार प्रतिस्पर्धा बढ़ रही है, ऐसे में ये सुविधाएं अब काफी लोगों की पहुंच में हैं। टिकट आकार 5 लाख रुपए से शुरू होता है और अधिकतम सीमा कोई नहीं है। पोर्टफोलियो मैनेजर अपनी सुविधाओं को आपकी जरूरतों के हिसाब से बदलता है। अगर जरूरत पड़ी, तो ब्रोकरेज ऐसी स्कीम भी रखते हैं, जो जैन या शरीयत के हिसाब से निवेश में मदद देती हैं। कुछ मामलों में आप उन उद्योगों और कंपनियों में कतई निवेश न करने की रणनीति पर भी अमल कर सकते हैं, जिनसे परहेज होना चाहिए।
अब वे दिन हवा हुए जब पोर्टफोलियो मैनेजर निवेश के अपने फैसले केवल कंपनी के फंडामेंटल के हिसाब से लेता था। पोर्टफोलियो मैनेजर अब तकनीकी मानकों या आर्बिट्राज से जुड़े अवसर के आधार पर निर्णय लेते हैं। शेयरखान की प्रो टेक पीएमएस एक ऐसी स्कीम है, जो तकनीकी विश्लेषण का इस्तेमाल करती है। शेयरखान के पोर्टफोलियो मैनेजर रोहित श्रीवास्तव ने कहा, 'बाजार चढ़े या उतरे, हमारा विचार क्लाइंट को हर हाल में रिटर्न मुहैया कराना होगा।' निफ्टी थ्रिफ्टी नामक उत्पाद इंडेक्स ट्रेडिंग मैथेमेटिकल मॉडल है और यह बाजार की दिशा का अंदाजा लगाने का काम करता है।
वे2वेल्थ एक अन्य ब्रोकरेह हाउस है, जो तकनीकी पीएमएम मुहैया कराता है। पहले फंड मैनेजर फंडामेंटल आधार पर 200 शेयरों का समूह चुनते थे। तकनीकी मानकों के आधार पर शेयर के एंट्री और एग्जिट स्तर का आकलन किया जाता था। बाजार में ऐसी कुछ स्कीम हैं, जिसमें पेयर ट्रेडिंग रूट अपनाया जाता है। इसमें फंड मैनेजर चुने हुए शेयरों के जोड़े में विपरीत दिशाओं में ट्रेडिंग की पहल करता है।
आर्बिट्राज रणनीति में विश्वास रखने वाले लागों को भी इन प्लेटफॉर्म से समाधान मिल सकते हैं, जो उनकी जरूरतों को पूरा करने का काम करते हैं। एसएमसी जैसे ब्रोकरेज हाउस ने आर्बिट्राज स्कीम लॉन्च की थी, जिसमें जोखिम काफी कम है। मसलन, पोर्टफोलियो मैनेजर कैश मार्केट में लॉन्ग पोजिशन और वायदा बाजार में शॉर्ट पोजिशन में एक साथ दाखिल होते हैं, जिससे कीमतों में अंतर का फायदा उठाने का मौका मिलता है।
सामान्य तौर पर पीएमएस स्कीम मुनाफे में बंटवारे के आधार पर या फ्लैट फीस मॉडल पर काम करती है। इसलिए, ऐसे मॉडल मिल सकते हैं जो केवल एसेट मैनेजमेंट फीस वसूलें और तब तक मुनाफे का अंश न लें, जब तक कि न्यूनतम दर में रिटर्न दिला न दें। यह स्तर 10 फीसदी हो सकता है। इसके बाद वे मुनाफे में हिस्सा मांग सकते हैं। ऐसी स्थिति भी आ सकती हैं, जिसमें आपको दोनों स्थितियों का मिश्रण मिले। मसलन, एक पीएमएस प्रोवाइडर तिमाही में 2 फीसदी सालाना की फीस और 10 फीसदी के हर्डल रेट के साथ मुनाफे में 25 फीसदी हिस्सा लेता है। एक विदेशी निजी बैंकिंग संस्थान के वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, 'सीमित दायरे में कारोबार करने वाले बाजार में म्यूचुअल फंड के बजाय प्रोफेशनल पोर्टफोलियो मैनेजर की मदद लेना ज्यादा बेहतर है, क्योंकि उनकी मुनाफा वसूली की रणनीतियां काफी आक्रामक होती हैं।'
हालांकि, आपको कम पाबंदियों वाले माहौल के असर को भी समझना होगा। कई मामलों में आपको अलग तरह के इंतजामात करने की जरूरत होगी। कुछ ही ऐसे पीएमएस प्रोवाइडर हैं, जो आपको अतीत प्रदर्शन का रिकॉर्ड मुहैया करा सके। फीस और मुनाफे में हिस्से पर बातचीत हो सकती है और यह निवेशक पर निर्भर करता है। ओवर ट्रेडिंग की संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता।
अगर वह चाहता, तो भी सारा निवेश नकदी में नहीं बदला जा सकता था, क्योंकि आवंटन पर स्कीम केंद्रित पाबंदियां लगी हैं। लेकिन इन तर्कों से राजन को कोई राहत नहीं मिली, जो रिटर्न और पूंजी सुरक्षा चाहते थे। अब सवाल उठता है कि क्या कोई ऐसी निवेश रणनीति है, जो बाजार के हालात कैसे भी क्यों न हों, बढ़िया रिटर्न मुहैया कराए?
यह ख्वाब की तरह लगता है, लेकिन ब्रोकरेज फर्म ऐसी पोर्टफोलियो मैनेजमेंट स्कीम पेश करती हैं, जिनका उद्देश्य ठीक यही है। ये कस्टमाइज समाधान होते हैं, जिसमें फंड मैनेजर गिरावट की आशंका के हिसाब से नकदी में बने रहने का फैसला कर सकते हैं।
मनी मैनेजमेंट कारोबार में लगातार प्रतिस्पर्धा बढ़ रही है, ऐसे में ये सुविधाएं अब काफी लोगों की पहुंच में हैं। टिकट आकार 5 लाख रुपए से शुरू होता है और अधिकतम सीमा कोई नहीं है। पोर्टफोलियो मैनेजर अपनी सुविधाओं को आपकी जरूरतों के हिसाब से बदलता है। अगर जरूरत पड़ी, तो ब्रोकरेज ऐसी स्कीम भी रखते हैं, जो जैन या शरीयत के हिसाब से निवेश में मदद देती हैं। कुछ मामलों में आप उन उद्योगों और कंपनियों में कतई निवेश न करने की रणनीति पर भी अमल कर सकते हैं, जिनसे परहेज होना चाहिए।
अब वे दिन हवा हुए जब पोर्टफोलियो मैनेजर निवेश के अपने फैसले केवल कंपनी के फंडामेंटल के हिसाब से लेता था। पोर्टफोलियो मैनेजर अब तकनीकी मानकों या आर्बिट्राज से जुड़े अवसर के आधार पर निर्णय लेते हैं। शेयरखान की प्रो टेक पीएमएस एक ऐसी स्कीम है, जो तकनीकी विश्लेषण का इस्तेमाल करती है। शेयरखान के पोर्टफोलियो मैनेजर रोहित श्रीवास्तव ने कहा, 'बाजार चढ़े या उतरे, हमारा विचार क्लाइंट को हर हाल में रिटर्न मुहैया कराना होगा।' निफ्टी थ्रिफ्टी नामक उत्पाद इंडेक्स ट्रेडिंग मैथेमेटिकल मॉडल है और यह बाजार की दिशा का अंदाजा लगाने का काम करता है।
वे2वेल्थ एक अन्य ब्रोकरेह हाउस है, जो तकनीकी पीएमएम मुहैया कराता है। पहले फंड मैनेजर फंडामेंटल आधार पर 200 शेयरों का समूह चुनते थे। तकनीकी मानकों के आधार पर शेयर के एंट्री और एग्जिट स्तर का आकलन किया जाता था। बाजार में ऐसी कुछ स्कीम हैं, जिसमें पेयर ट्रेडिंग रूट अपनाया जाता है। इसमें फंड मैनेजर चुने हुए शेयरों के जोड़े में विपरीत दिशाओं में ट्रेडिंग की पहल करता है।
आर्बिट्राज रणनीति में विश्वास रखने वाले लागों को भी इन प्लेटफॉर्म से समाधान मिल सकते हैं, जो उनकी जरूरतों को पूरा करने का काम करते हैं। एसएमसी जैसे ब्रोकरेज हाउस ने आर्बिट्राज स्कीम लॉन्च की थी, जिसमें जोखिम काफी कम है। मसलन, पोर्टफोलियो मैनेजर कैश मार्केट में लॉन्ग पोजिशन और वायदा बाजार में शॉर्ट पोजिशन में एक साथ दाखिल होते हैं, जिससे कीमतों में अंतर का फायदा उठाने का मौका मिलता है।
सामान्य तौर पर पीएमएस स्कीम मुनाफे में बंटवारे के आधार पर या फ्लैट फीस मॉडल पर काम करती है। इसलिए, ऐसे मॉडल मिल सकते हैं जो केवल एसेट मैनेजमेंट फीस वसूलें और तब तक मुनाफे का अंश न लें, जब तक कि न्यूनतम दर में रिटर्न दिला न दें। यह स्तर 10 फीसदी हो सकता है। इसके बाद वे मुनाफे में हिस्सा मांग सकते हैं। ऐसी स्थिति भी आ सकती हैं, जिसमें आपको दोनों स्थितियों का मिश्रण मिले। मसलन, एक पीएमएस प्रोवाइडर तिमाही में 2 फीसदी सालाना की फीस और 10 फीसदी के हर्डल रेट के साथ मुनाफे में 25 फीसदी हिस्सा लेता है। एक विदेशी निजी बैंकिंग संस्थान के वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, 'सीमित दायरे में कारोबार करने वाले बाजार में म्यूचुअल फंड के बजाय प्रोफेशनल पोर्टफोलियो मैनेजर की मदद लेना ज्यादा बेहतर है, क्योंकि उनकी मुनाफा वसूली की रणनीतियां काफी आक्रामक होती हैं।'
हालांकि, आपको कम पाबंदियों वाले माहौल के असर को भी समझना होगा। कई मामलों में आपको अलग तरह के इंतजामात करने की जरूरत होगी। कुछ ही ऐसे पीएमएस प्रोवाइडर हैं, जो आपको अतीत प्रदर्शन का रिकॉर्ड मुहैया करा सके। फीस और मुनाफे में हिस्से पर बातचीत हो सकती है और यह निवेशक पर निर्भर करता है। ओवर ट्रेडिंग की संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता।
No comments:
Post a Comment